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लेखनी कहानी -03-Nov-2022 कौमुदी महोत्सव

# आज की प्रतियोगिता हेतु कहानी 


कौमुदी महोत्सव 

कार्तिक मास की पूर्णिमा का दिन था । शांत नीले आसमान में चांद अपनी धवल चांदनी बिखेर कर यह संदेश दे रहा था कि प्रेम चांदनी की तरह निर्मल, धवल, शांत, सौम्य और सरल है । जिस तरह चांदनी जन कल्याणकारी है उसी तरह ये प्रेम भी है जो सदैव देने की बात करता है लेने की नहीं । इस निश्चल प्रेम में निमग्न होकर नीलकंठ महादेव एक दिन घनघोर हलाहल पी जाते हैं और विश्व का कल्याण करते हैं । ये प्रेम होता ही ऐसा है । इस प्रेम के लिए लोग क्या क्या नहीं करते ? फिर भी अगर सच्चा प्रेम मिल जाए तो बड़ी बात है । आज का दिन भी पाटलिपुत्र के लिये वैसा ही था । प्रेम के लिये समर्पित, प्रेममय और प्रेम के इजहार करने का दिन था । आज के दिन युवक युवती अपने अपने प्रेमी प्रेमिका को वरण करते हैं । 

इस महान अवसर पर आज के दिन पाटलिपुत्र में एक विशाल आयोजन किया जाता है जिसे "कौमुदी महोत्सव" कहते हैं । सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल में आचार्य चाणक्य ने इस महोत्सव को प्रारंभ किया था । सनातन धर्म की यह विरासत है कि वह सबको स्वतन्त्रता प्रदान करता है । आस्था की स्वतन्त्रता, विचारों की स्वतन्त्रता, व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता और यहां तक कि जीवन साथी चुनने की स्वतन्त्रता । आज के दिन विवाह योग्य युवक और युवतियों को अपने प्रेम को प्रकट करने की स्वतन्त्रता थी तो प्रेम को स्वीकार या अस्वीकार करने की भी स्वतंत्रता थी । यही कारण था कि यह आयोजन जन जन की रुचि का आयोजन बन गया था । 
सम्राट अशोक अपनी मंत्रि परिषद के साथ विशाल पाण्डाल में पधारे । उनके साथ उनकी पत्नी देवी, कारूवाकी, पद्मावती, पुत्र महेन्द्र, तीवर, कुणाल , पुत्रियां संघमित्रा और चारुमती भी थीं । पाण्डाल में भारी कोलाहल था मगर सम्राट के आगमन के पश्चात कोलाहल शांति के सागर में परिणत हो गया । अमात्य और सेनापति ने सम्राट का अभिवादन किया और महोत्सव प्रारंभ करने की अनुमति मांगी जो दे दी गई । इस तरह रंगारंग महोत्सव प्रारंभ हो गया । 

युवकों का समूह अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करने के लिये दौड़ पड़ा । मल्ल युद्ध, द्वंद्व युद्ध, गदा युद्ध, तीरंदाजी, तलवारबाजी, घुड़सवारी, रथ संचलन जैसी अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं । इस प्रतियोगिता में राज्य के संपूर्ण विवाह योग्य युवकों ने भाग लिया और अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन किया । एक युवक जिसका नाम विशालाक्ष था , निर्विवाद सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुआ । उसने न केवल इन समस्त प्रतियोगिताओं में विजय श्री का वरण किया अपितु वह कर्ण की भांति सुंदर और भीम की तरह सुगठित भी था । सबकी नजरें उसी पर टिकी हुई थीं । इस आयोजन में भाग लेने वाली समस्त युवतियों का वह चहेता बन चुका था मगर विवाह तो किसी एक से ही होना था उसका । हर युवती ईश्वर से कामना करने लगी कि विशालाक्ष उसे पसंद कर ले । काश, ऐसा हो जाये । 

प्रमदा के सौन्दर्य की कांति न केवल मौर्य साम्राज्य में अपितु अन्य राज्यों में भी फैल गई थी । देवी लक्ष्मी की तरह गौर वर्ण और देवी द्रोपदी की तरह सुंदर नैन नक्श ने प्रमदा को समकालीन इतिहास में विश्व सुंदरी बना दिया था । प्रमदा न केवल गृह सज्जा में सकुशल थी अपितु पाक कला में भी वह अद्वितीय थी । इसके अतिरिक्त वह युद्ध कला में भी निपुण थी । जिस तरह उसका श्रंगार किया गया था उससे वह अपूर्व सुंदरी बन गई थी । उसने भी युवतियों की समस्त प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया था । अब तक वह अपने भावी पति के बारे में कुछ निश्चित नहीं कर पा रही थी । मगर विशालाक्ष को देखने और उसकी प्रतिभा से दो चार होने के पश्चात अब उसके मन में कोई संशय नहीं रह गया था । पर लाख टके का प्रश्न यह था कि क्या विशालाक्ष उसे अपनायेगा ? उसके मन में शंका के बादल उमड़ने लगे । अगर विशालाक्ष ने उसे नहीं अपनाया तो ? वह परेशान हो गई । 

उसकी सखि निहारिका प्रमदा के दिल के भाव जान गई और उसने प्रेम में व्याकुल प्रमदा की गर्म सांसें अपने बदन पर महसूस की । उसे प्रमदा की हालत का पता चल चुका था । उसने एक कागज लिया और उस पर एक पंक्ति लिखी 
"चांदनी व्याकुल है चांद की बांहों में समाने को" 
और उसने वह कागज अपने एक छोटे से सुंदर से तोते के पंजों में फंसा दिया और उसे विशालाक्ष की ओर उड़ा दिया । 
तोता सीधा विशालाक्ष के पास पहुंचा । विशालाक्ष ने उसके पंजों की ओर देखा तो उसने वहां पर एक कागज का टुकड़ा फंसा पाया । उसने उसे निकाला और पढने लगा । वह तुरंत समझ गया । मगर यह भेजा किसने है, ये ज्यादा महत्वपूर्ण था । उसने एक नजर सभी युवतियों पर डाली और अंत में उसकी निगाहें प्रमदा पर आकर टिक गईं । मगर प्रमदा तो अपने आप में ही खोई हुई थी । अलबत्ता निहारिका उसी की ओर निहार रही थी । दोनों की नजरें मिली तो निहारिका ने प्रमदा की ओर इशारा कर दिया । प्रमदा को देखकर उसकी बाछें खिल गई । उसने प्रमदा के सौन्दर्य के बारे में सुना बहुत था मगर आज हुस्न का सागर उसके सामने मौजूद था । उसने उस पंक्ति के नीचे कुछ लिख दिया 
"चांद भी तो आतुर है चांदनी की बांहों में जाने को" 
और उसने वह तोता फुर्र से उड़ा दिया । तोता निहारिका के पास पहुंचा और निहारिका ने वह कागज निकाल लिया । उसे दो बार पढा फिर आश्वस्त होने के लिये उसने विशालाक्ष की ओर देखा । विशालाक्ष उसे और प्रमदा को ही देख रहा था । निहारिका और विशालाक्ष की आंखें फिर से चार हुईं और विशालाक्ष ने गर्दन हिलाकर अपनी सहमति प्रदान कर दी । निहारिका ने प्रमदा को सारी बातें बता दी और निश्चिंत होने के लिये कह दिया । अब प्रमदा का मुखड़ा भी गुलाब की तरह खिल गया था । 

युवक और युवतियों को पंक्तिबद्ध किया गया और उनके "स्वयंवर" की घोषणा हो गई । विशालाक्ष और प्रमदा एक दूसरे के हो गये । सम्राट अशोक ने सभी जोड़ों का वहीं पर विवाह संपन्न करवाया । उसने विशालाक्ष को सेना में एक महत्वपूर्ण पद दे दिया और प्रमदा को गुप्तचर विभाग की प्रमुख बना दिया । इस तरह पाटलिपुत्र का वह कौमुदी महोत्सव संपन्न हुआ । 

श्री हरि 
3.11.22 


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6 Comments

shweta soni

05-Nov-2022 02:18 PM

शानदार रचना

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Khan

04-Nov-2022 05:00 PM

Shandar 🌸🙏

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Pratikhya Priyadarshini

03-Nov-2022 06:13 PM

👍

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